मनसा देवी हादसा: करंट की आशंका से मची भगदड़, 8 की मौत- अब ट्रस्ट और प्रशासन नेतृत्व की जवाबदेही पर उठे सवाल,,,

महंत रवींद्र पुरी न केवल ट्रस्ट अध्यक्ष, बल्कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के प्रमुख भी- दोहरी जिम्मेदारी के बावजूद घोर चूक का आरोप
हरिद्वार। रविवार सुबह मनसा देवी मंदिर के पैदल मार्ग पर हुए हादसे में करंट की आशंका ने श्रद्धालुओं में अफरा-तफरी फैला दी। भगदड़ में अब तक 8 श्रद्धालु जान गंवा चुके हैं और दर्जनों घायल हैं। यह त्रासदी सावन के तीसरे रविवार को हुई — जब आस्था अपने चरम पर होती है।
इंडिया टुडे से बात करते हुए एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया,
“भीड़ में अचानक किसी को करंट जैसा झटका महसूस हुआ, एक महिला चिल्लाई — ‘करंट लग रहा है’ — और फिर लोग एक-दूसरे को रौंदते हुए भागने लगे।”
यह दृश्य माता के दरबार में आए श्रद्धालुओं के लिए अकालकाल जैसा बन गया। लेकिन इसके बाद जो सामने आ रहा है, वो केवल हादसा नहीं, एक प्रशासनिक और धार्मिक लापरवाही का चेहरा है।
महंत रवींद्र पुरी — मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष ही नहीं, बल्कि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।
यानि उनकी जिम्मेदारी केवल ट्रस्ट तक सीमित नहीं, बल्कि देशभर के सनातन धर्म और संत परंपरा के प्रतिनिधि के रूप में भी मानी जाती है।
पर सवाल ये है कि जब:
- ट्रस्ट के पास करोड़ों की आय है,
- लाखों की भीड़ की जानकारी पूर्व से थी,
- सावन के रविवार को प्रशासनिक सहयोग की जरूरत स्वाभाविक थी,
- तो फिर ऐसी लापरवाही क्यों?
जब महंत रवींद्र पुरी से हादसे पर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने बयान दिया,
“घटना मंदिर परिसर में नहीं, मंदिर के बाहर जीने पर हुई।”
इस बयान को जनता ने संवेदनहीन और जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने वाला करार दिया।
क्या यह हादसा ₹5 लाख और ₹1 लाख के मुआवज़े से सुलझ जाएगा?
महंत रवींद्र पुरी ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से बात कर मृतकों को ₹5 लाख और घायलों को ₹1 लाख की सहायता राशि की घोषणा करवाई है।
लेकिन प्रश्न यह है:
क्या यह पैसा उस दर्शन की पूर्ति कर सकता है, जिसके लिए कोई भक्त सैकड़ों किलोमीटर दूर से आया था?
क्या यह घटना हमारे ईश्वर, हमारी आस्था और व्यवस्था के ताने-बाने पर सवाल नहीं उठाती?
विपक्षी दलों ने घेरा, लेकिन संत समाज की चुप्पी भी अब सवालों में
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी:
“मृतकों और घायलों के प्रति मेरी संवेदना है, लेकिन ट्रस्ट और सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते। घटना की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।”
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर दुख जताया, लेकिन संत समाज के शीर्ष नेतृत्व से जवाबदेही पर मौन गूंज रहा है।
क्या सनातन धर्म के नाम पर सिर्फ आयोजनों की भव्यता रह गई है, परन्तु भक्तों की सुरक्षा और गरिमा उपेक्षित है?
क्या अब भी समय नहीं आया कि ट्रस्ट और धार्मिक संस्थान गंभीर समीक्षा और पारदर्शिता को अपनाएं?