“गांधी बनाम सावरकर: जब राष्ट्र, धर्म और जाति पर हुई वैचारिक टकराहट!”

स्वतंत्र भारत के भविष्य की नींव रखते हुए दो महापुरुषों की सोच टकराई—एक ओर गांधी का सुधारवादी दृष्टिकोण, दूसरी ओर सावरकर की क्रांतिकारी पुकार।
🗞️ विशेष रिपोर्ट | संवाददाता विशेष
भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति का आंदोलन नहीं था, बल्कि यह भारत के सामाजिक ढांचे को लेकर भी एक गहन मंथन था। इस मंथन के केंद्र में थे दो विचारधाराएं—महात्मा गांधी और विनायक दामोदर सावरकर।
जहाँ गांधीजी वर्णाश्रम व्यवस्था में सुधार के पक्षधर थे, वहीं सावरकर जाति व्यवस्था को “धार्मिक गुलामी” मानते थे और इसका तत्काल उन्मूलन चाहते थे।
🗣️ सावरकर का स्पष्ट विचार: “जाति नहीं, समता चाहिए”
सावरकर ने धर्म और राष्ट्र को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का आधार माना।
उनका तर्क था:
“जब तक जाति व्यवस्था कायम है, हिन्दू धर्म कमजोर रहेगा और राष्ट्र विभाजित।”
उन्होंने ‘हरिजन’ शब्द को ‘हरिजल’ कहकर उसकी आलोचना की और कहा कि इससे शूद्रों को केवल सांत्वना मिलती है, सम्मान नहीं।
🕊️ गांधीजी की विचारधारा: “सुधार के माध्यम से एकता”
गांधीजी ने हरिजनों को समाज में लाने के लिए आध्यात्मिक शब्दावली का प्रयोग किया।
वे मानते थे कि समाज में परिवर्तन धीरे-धीरे होना चाहिए।
उन्होंने कहा:
“जाति एक नैतिक ढांचा है, जिसे सुधार के माध्यम से उपयोगी बनाया जा सकता है।”
इस पर सावरकर की तीखी प्रतिक्रिया रही:
“अगर स्वतंत्रता अधूरी है, तो वह गुलामी से कम नहीं!”
🔥 विभाजन के बाद विचारधारा की पुनरावृत्ति: अटल जी की कविता से मिली नयी जान
भारत के बँटवारे और बाद की राजनीतिक अस्थिरता ने सावरकर समर्थकों को यह कहने का आधार दिया कि
“यदि जातिवाद को तभी खत्म कर दिया गया होता, तो देश आज जातीय राजनीति में उलझा न होता।”
वर्षों बाद, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने सावरकर समर्थकों को एक नई प्रेरणा दी:
“जिन्हें न समर में भूख लगी,
जिनका कंठ न प्यासा था,
वह आज बता रहे हैं हमको
त्याग कैसा होता है!”
❌ गांधीजी की हत्या और सावरकर: तथ्य बनाम अफवाह
नाथूराम गोडसे, जिन्होंने गांधी की हत्या की, एक समय सावरकर से प्रभावित ज़रूर थे, लेकिन कोर्ट में सावरकर पर कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ।
इतिहासकार मानते हैं कि हत्या वैचारिक असहमति का परिणाम नहीं, एक अतिवादी मानसिकता की उपज थी।
📊 मौजूदा राजनीति और जातीय असंतुलन: सावरकर की चेतावनी फिर प्रासंगिक
आज भारत जिस जातीय राजनीति के जाल में उलझा हुआ है, वह सावरकर की उस चेतावनी की याद दिलाता है, जब उन्होंने कहा था:
“अगर हिंदू समाज को अखंड रखना है, तो जातिवाद को नष्ट करना ही होगा।”
📚 निष्कर्ष:
गांधी और सावरकर – दोनों ने भारत के लिए सपना देखा, बस रास्ते अलग थे।
जहाँ गांधी ने संयम और सुधार को चुना, सावरकर ने बलिदान और क्रांति को।
भारत की नई पीढ़ी के लिए यह ज़रूरी है कि वह इतिहास को केवल श्रद्धा से नहीं, विवेक से भी देखे।
🖋️ रिपोर्टर:
[आपका नाम] | विशेष संवाददाता, न्यूज हरिद्वार।
📅 प्रकाशन तिथि: 3 जून 2025