हरिद्वार प्रशासन की बड़ी लापरवाही — करोड़ों की योजनाओं के बावजूद जानवरों की हो रही मौतें। घायल बंदर की पाँच घंटे की तड़प ने बेनकाब कर दिया पूरा सिस्टम।
बंदर ने दम तोड़ा, करोड़ों का ‘बंदरवाड़ा’ धूल खा रहा
मंगलवार को बजरंगबली की सेना पर हुई लापरवाही से जनता,श्रद्धालु और एनिमल लवर्स में आक्रोश

हरिद्वार प्रशासन की बड़ी लापरवाही ने एक मासूम जानवर की जान ले ली।
नवरात्रों की अष्टमी पर मंगलवार सुबह घायल बंदर की पाँच घंटे की तड़प ने विभागीय सिस्टम की पोल खोल दी।

वरिष्ठ पत्रकार तपन सुशील नौटियाल (TOI) को यह बंदर सुबह पाँच बजे सड़क किनारे घायल मिला।
उस समय उनके घर पर अष्टमी की पूजा-पाठ और कन्या भोज का कार्यक्रम चल रहा था, लेकिन उन्होंने धार्मिक अनुष्ठान से बढ़कर मानवता और संवेदनशीलता को प्राथमिकता दी।
उन्होंने बंदर की सेवा में खुद को समर्पित किया और निजी स्तर पर उपचार कराया। इसी दौरान बंदर की नाखून से उन्हें भी चोट आई और अब उन्हें रेबीज़ का इंजेक्शन लगवाना पड़ रहा है।

सुबह 10 बजे उन्होंने घायल बंदर को वन विभाग की रेस्क्यू टीम को सौंप दिया।
लेकिन विभागीय तंत्र की सुस्ती के कारण उसे अस्पताल और मेडिकल रेस्क्यू सेंटर तक पहुँचाने में लगभग पाँच घंटे की देरी हुई।

आखिरकार दोपहर ढाई बजे श्यामपुर चौकी के पास उस बंदर ने अंतिम सांस ली।
करोड़ों रुपये खर्च कर चिड़ियापुर में बनाए गए बंदरवाड़ा और मेडिकल रेस्क्यू सेंटर सिर्फ कागज़ी साबित हो रहे हैं।
न तो समय पर रेस्क्यू होता है और न ही इलाज, जिससे करोड़ों की योजनाएँ धूल खा रही हैं।
रेस्क्यू सेंटर प्रभारी नेत्र सिंह ने सफाई दी –
“हमें कोई सूचना नहीं मिली। अगर जानवर हमारे पास आता तो हम देखभाल कर स्वस्थ करने की कोशिश करते। हमारे सेंटर में कई जानवर ठीक हो रहे हैं।”
वहीं, हरिद्वार के चीफ वेटनरी ऑफिसर डी.के. चंद्र ने माना कि मामला गंभीर है –
“हमारे आदेश साफ़ हैं कि किसी भी जानवर को चिकित्सा के अभाव में मौत न हो। अगर लापरवाही हुई है तो जांच कर कार्रवाई होगी।”
लेकिन एनिमल लवर्स ने इसे लापरवाही नहीं बल्कि हत्या बताया।
उनका कहना है –
“करोड़ों खर्च के बावजूद अगर जानवर तड़प-तड़पकर मर रहे हैं, तो यह सीधी हत्या है। दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।”
यह घटना धार्मिक भावनाओं को भी आहत कर गई।
सोशल मीडिया पर लोग लिख रहे हैं कि मंगलवार भगवान बजरंगबली का दिन होता है और बंदर को उनकी सेना माना जाता है।
ऐसे दिन बंदर की मौत को श्रद्धालु सिर्फ प्रशासनिक गलती नहीं, बल्कि धार्मिक और सामाजिक आघात मान रहे हैं।

महामंडलेश्वर प्रबोधानंद गिरी ने भी सख्त नाराजगी जताते हुए कहा –
“मंगलवार को बंदर की मौत लापरवाही के चलते बहुत ही दुखद और अपशकुन है। लापरवाही करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे असंवेदनशील अधिकारियों पर ईश्वरीय प्रकोप निश्चित गिरेगा।”
करोड़ों का बंदरवाड़ा, करोडो की योजनाएँ — फिर भी हरिद्वार की सड़कों पर तड़प-तड़प कर मरते जानवर। सवाल सीधा है: यह लापरवाही है या हत्या
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सोशल मीडिया पर तरह तरह प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, लोगों का कहना है जब प्रतिष्ठित वरिष्ठ पत्रकार के द्वारा विभाग को सूचित किया गया बावजूद विभाग की सुस्ती इस कदर रही, तो आम जनता की सुनवाई कैसे संभव है?
































































































































































































































































