हरेला पर हरियाली का जनाजा: बहादराबाद में आम के बाग का बेरहम सफाया, वन माफिया और विभागीय गठजोड़ की खुली साजिश उजागर

रात के अंधेरे में काटे गए सैकड़ों फलदार वृक्ष, अधिकारी मौन — मुख्यमंत्री के ‘वृक्ष बचाओ’ आह्वान पर माफियाओं की सीधी चुनौती
हरिद्वार | विशेष रिपोर्ट
“हरेला पर्व” के पावन अवसर पर जब पूरा उत्तराखंड वृक्षारोपण का उत्सव मना रहा था, तब हरिद्वार के बहादराबाद क्षेत्र में हरे-भरे फलदार आम के बाग को रातोंरात काट डाला गया। यह न सिर्फ पर्यावरण की हत्या है, बल्कि उत्तराखंड सरकार, वन विभाग और उद्यान विभाग की कार्यशैली पर भी गहरा सवाल खड़ा करता है।
सूत्रों के अनुसार, यह पूरा कटान बिना किसी वैध अनुमति के, पूरी सुनियोजित साजिश के तहत अंजाम दिया गया, जिसमें माफिया, ठेकेदार, और जिम्मेदार अधिकारी तक शामिल माने जा रहे हैं।
वारदात की वीडियो में कैद हकीकत: “कटते नहीं पेड़, कट रही है व्यवस्था”
स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मौके की वीडियोग्राफी की, जिसमें साफ दिखता है:
8 से 10 ट्रैक्टर-ट्रॉली कटे हुए आम के पेड़ों से लदी खड़ी थीं।
कई मजदूर पेड़ों पर चढ़कर कटान कर रहे थे, कुछ भागते हुए भी कैमरे में कैद हुए।
मौके पर दोपहिया वाहन और ठेकेदारों के लोग खुलेआम सक्रिय थे।
(ये वीडियो न्यूज़ हरिद्वार के सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं)
प्रशासनिक चुप्पी और जिम्मेदारी का ठिकरा-फेंक खेल
सूचना मिलने पर SDO पूनम केंथोला ने वन विभाग की फ्लाइंग टीम भेजी।
रेंजर राजेश राठौर ने मौके पर पहुंचकर पेड़ों और ट्रॉली की मौजूदगी की पुष्टि की।
लेकिन… अगली सुबह वन विभाग ने पूरा मामला उद्यान विभाग को सौंपकर ‘हाथ झाड़’ लिए।
रेंजर शैलेन्द्र नेगी ने कहा —
“फलदार वृक्षों के कटान पर रोक का आदेश हमारे पास नहीं, यह उद्यान विभाग का विषय है।”
उद्यान विभाग के प्रमुख तेजपाल सिंह ने सारा दोष मासूम अली पर डाल दिया, जिन्होंने कहा —
“हमारा काम केवल आवेदन लेना है, न अनुमति देना और न ही कार्रवाई करना।”
यानी दो विभागों के बीच ‘कुर्सी-कुर्सी’ खेल में जंगल साफ हो गया।
स्थानीय आक्रोश और क्षेत्रीय मांगें
नागरिकों का कहना है —
> “जब आम आदमी एक पेड़ काटे तो उसे जेल भेज दिया जाता है, फिर पूरा बाग कैसे साफ हो गया?”
स्थानीय लोगों ने मांग की है कि:
- क्षेत्रीय उद्यान अधिकारी मासूम अली की कॉल डिटेल सार्वजनिक की जाए।
- वन व उद्यान विभाग की भूमिका की उच्चस्तरीय जांच हो।
- मुख्यमंत्री को स्वयं हस्तक्षेप कर माफिया-अफसर गठजोड़ को बेनकाब करना चाहिए।
मात्रसदन व अधिवक्ताओं का खुला विरोध
मात्रसदन, हरिद्वार ने पेड़ कटान का विरोध करते हुए कहा:
“हरेला पर्व के नाम पर पौधे लगाना और रात को पेड़ कटाना — यह दोहरी नीति नहीं, दोमुंही शासन व्यवस्था है।”
ब्रह्मचारी सुधानंद, अधिवक्ता, ने कहा:”हमारे पास पूरे वीडियो साक्ष्य हैं, जिन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा। सरकार माफिया संरक्षक बन गई है।”
डीएम अनजान, मंत्री को जानकारी, फिर भी कार्रवाई ‘शून्य’
जब न्यूज़ हरिद्वार ने जिलाधिकारी से बात की, तो उनका जवाब था —
“मामला संज्ञान में नहीं है, रिपोर्ट लेकर बात करूंगा।”
जबकि वन मंत्री सुबोध उनियाल को पहले ही पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी जा चुकी है।
फिर भी, धरातल पर एक भी गिरफ्तारी या निलंबन नहीं हुआ।
सवाल जो आज पूरे उत्तराखंड से उठ रहे हैं
- क्या उत्तराखंड में हरियाली अब सिर्फ सरकारी नाट्य-उत्सव बनकर रह गई है?
- क्या वन एवं उद्यान विभाग माफियाओं के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं?
- हरेला पर्व की पवित्रता की यह खुली अवहेलना क्या सत्ता की नीयत उजागर नहीं करती?
निष्कर्ष: हरेला पर ‘हरियाली वध’ — सरकार की नैतिक पराजय
यह मामला किसी एक बाग, किसी एक ठेकेदार या किसी एक अधिकारी तक सीमित नहीं है।
यह उत्तराखंड की हरी आत्मा पर किया गया सुनियोजित हमला है।
यदि अब भी प्रदेश सरकार और न्याय प्रणाली ने कठोर हस्तक्षेप नहीं किया, तो वह दिन दूर नहीं जब “हरेला” केवल तस्वीरों और नारों में बचेगा — धरती पर नहीं।
- यह रिपोर्ट “न्यूज़ हरिद्वार” की विशेष पड़ताल का हिस्सा है, जिसमें हर बिंदु वीडियो साक्ष्य, मौखिक गवाहियों और प्रशासनिक प्रतिक्रियाओं के साथ दस्तावेज़ीकृत है।