August 6, 2025
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गंगा की गोद में गूंजता भ्रष्टाचार: मातृ सदन ने लगाए मुख्यमंत्री धामी व प्रशासन पर गंभीर आरोप

हरिद्वार, 23 मई 2025।

हरिद्वार स्थित आध्यात्मिक-सामाजिक संस्था मातृ सदन ने शुक्रवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उत्तराखंड सरकार, पुलिस प्रशासन और खनन अधिकारियों पर संगठित भ्रष्टाचार और गंगा नदी में व्यापक अवैध खनन का गंभीर आरोप लगाया है। संस्था ने दावा किया है कि उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों की खुलेआम अवहेलना हो रही है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं इस पूरे माफिया-तंत्र के “राजनीतिक संरक्षक” हैं।

प्रेस वक्तव्य के प्रमुख बिंदु:

गंगा के आरक्षित वनक्षेत्रों में अवैध खनन— पोकलैंड और जेसीबी मशीनों से गंगा की धारा में सीधे掘ाई, GPS लोकेशन और वीडियो साक्ष्यों सहित।

हरिद्वार के डीएम कर्मेन्द्र सिंह, लक्सर के एसडीएम सौरभ ओसवाल और तहसीलदार डुण्डा प्रताप पर आरोप कि ये अधिकारी शिकायतों पर कोई संज्ञान नहीं ले रहे, बल्कि माफियाओं के हितों में कार्य कर रहे हैं।

खनन अधिकारी काज़िम रज़ा पर गंगा में आस्था नहीं रखने और ‘खनन को वैधता देने’ का आरोप।

भिक्कमपुर चौकी के एसआई नवीन चौहान और लक्सर थाने के एसएचओ राजीव रौथन पर माफियाओं के साथ सांठगांठ, खनन स्थलों की सुरक्षा देने और शिकायतों की अनदेखी का सीधा आरोप।

 

संस्था का दावा:

गंगा में खनन की तस्वीरें, वीडियो और लोकेशन स्पष्ट प्रमाण हैं कि हरिद्वार के रायघाटी (नीलधारा क्षेत्र) में बीते 15 दिनों से बराड़ और हेमंत चौधरी नामक पट्टा धारकों द्वारा अवैध खनन किया जा रहा है, जिसमें स्थानीय प्रशासन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहयोगी है।

न्यायिक आदेशों की अवमानना?

मातृ सदन ने याद दिलाया है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि हरिद्वार क्षेत्र में खनन की स्थिति में एसएसपी जिम्मेदार होंगे, परंतु आज भी भिक्कमपुर चौकी क्षेत्र में खुलेआम खनन हो रहा है।

मीडिया और संत समाज पर भी सवाल

संस्था ने हरिद्वार के मुख्यधारा मीडिया और स्वयं को गंगा का सेवक बताने वाले साधु-संतों की चुप्पी पर भी सवाल उठाए हैं— “क्या यह चुप्पी माफिया तंत्र की साझेदारी है?”

 

संवैधानिक लड़ाई का ऐलान

मातृ सदन ने इस पूरे मामले को अब केवल नैतिक या सामाजिक मुद्दा नहीं, बल्कि संवैधानिक और न्यायिक व्यवस्था पर सीधा हमला बताया है। संस्था ने संकेत दिए हैं कि वह इस मुद्दे को लेकर उच्च न्यायालय और भारत के संविधान सम्मत दायरों में कठोर कानूनी कदम उठाएगी।

विशेष:

यह मामला यदि सही साबित होता है, तो यह न केवल प्रशासनिक शिथिलता का उदाहरण बनेगा, बल्कि धार्मिक-पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा और पारदर्शिता पर भी गहन प्रश्न खड़े करेगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या प्रदेश सरकार इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया देती है या यह विवाद आगे कानूनी मोड़ लेता है।

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