September 12, 2025
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हमें मुआवज़ा नहीं, ज़िंदगी चाहिए!” – मुर्शिदाबाद की महिलाएं बोलीं, ‘बीएसएफ कैंप चाहिए, नहीं तो वापसी नहीं’

वक्फ कानून विरोधी आंदोलन के बाद फैली हिंसा से सहमीं महिलाएं आज भी राहत शिविरों में; सुरक्षा की गारंटी के बिना घर लौटने से इंकार, महिला आयोग और राज्यपाल से लगाई गुहार

इस पूरे घटनाक्रम के बाद हरिद्वार साधु संत महात्मा महामंडलेश्वरों ने सख्त प्रतिक्रिया देते हुए मौजूदा सरकार से राष्ट्रपति शासन बंगाल में लगाने की अपील की है

 

मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल:
मुर्शिदाबाद के बेतबोना और धुलियान गांवों की महिलाएं, जो वक्फ कानून विरोधी आंदोलन के बाद भड़की सांप्रदायिक हिंसा का सबसे भयावह चेहरा बनीं, आज भी खौफ के साए में जी रही हैं। सरकारी राहत शिविरों में शरण लिए इन महिलाओं ने राष्ट्रीय महिला आयोग के सामने दिल दहला देने वाली आपबीती सुनाई और सुरक्षा की गारंटी की मांग रखी।

हमें पैसा नहीं चाहिए, हमारी जमीन ले लो, लेकिन यहां स्थायी बीएसएफ कैंप बनवाओ,” एक महिला ने आयोग के समक्ष फूट-फूट कर कहा। यह सिर्फ एक गुहार नहीं, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की चीख है जो अपने ही देश में असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

महिलाओं ने बताया कि प्रशासन उन्हें घर लौटने को कह रहा है, लेकिन “बिना सुरक्षा के हम वहां फिर से रेप के लिए नहीं जा सकते।” यह बयान महिला आयोग की सदस्य अर्चना मजूमदार ने मीडिया से साझा किया, जो इस घटना की क्रूरता को उजागर करता है।

राज्यपाल का हस्तक्षेप, महिला आयोग की सक्रियता
राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने लगातार दूसरे दिन पीड़ितों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनीं और भरोसा दिलाया कि वे केंद्र व राज्य सरकार से बात करेंगे। उन्होंने पीड़ितों को अपना निजी नंबर भी दिया। वहीं महिला आयोग की टीम ने सभी आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया।

पुलिस की भूमिका पर सवाल
एक पीड़िता ने बताया कि जब उन्होंने पुलिस से मदद मांगी, तो जवाब मिला – “अगर हथियार है तो लड़ो, वरना भाग जाओ।” यह कथन स्थानीय प्रशासन की संवेदनहीनता और गंभीर नाकामी की ओर इशारा करता है।

राष्ट्रपति शासन की मांग
हिंदू रक्षा सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रबोधानंद गिरि ने प्रधानमंत्री से बंगाल में तत्काल राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है, ताकि “हिंदुओं की जान-माल और सम्मान की रक्षा हो सके।”

 

लेख का अंत:
अब यह देखना बाकी है कि क्या सरकारें इन महिलाओं की चीखों को सुनेंगी या फिर ये आवाजें एक बार फिर सत्ता के गलियारों में गूंजते-गूंजते खो जाएंगी।

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